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मालगा की यात्रा, नौ भाग शृंखला का भाग ५

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मैंने एक कविता लिखी, 'मुझे नहीं पता मेरे ह्रदय का क्या करूँ, "यह सच्ची भावना है- मैं वास्तव में हर दिन उस तरह महसूस करती हूँ। जहां भी मैं देखती हूँ, पीड़ा है। हर जगह मैं देखती हूँ, यह मेरा दिल दुखाता है, हर समय। केवल मानवों की पीड़ा ही नहीं, जानवरों की पीड़ा भी।
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