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निस्वार्थ प्रेम सर्वोत्तम है-2 का भाग 1

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बेशक, शरीर है अभी भी आत्मा से जुड़ा हुआ। नहीं तो, आप मर जाओगे। वहाँ एक रस्सी है जो हमें आत्मा से जोड़ती है कोर्इ बात नहीं आप किस स्तर पर हो। और जब आप मरते हो, तब यह कट जाती है। आपके मरने से पहले, आप होते हो उससे जुड़े। ठीक है? तो, जब आप यहाँ होते हो, उदाहरण के लिए, गुरू जी की उपस्थिति में, आपका शरीर इसे सोख लेगा शरीर की निकटता के कारण, और तब यह आत्मा को पोषित करेगा। ठीक है? और यकीनन, उदाहरण के लिए, सामान्य लोगों के लिए, जब आप सोते हैं, आत्मा भी आराम लेने के लिए छोड़ जाती है। क्योंकि शरीर करता है सब तरह की चीज़ें। कर्इ बार या बहुत थकाउ होती है आत्मा के लिए चालबाज़ी करना।

तो, उस तरह, यदि हम चीज़ें करते हैं जो गल्त होती हैं, दूसरे लोगों को दुख पहुंचाती हैं, उदाहरण के लिए, तब क्योंकि हम एक है, इसलिए यदि आत्मा को ठेस पहुंचती है, तो आत्मा भी प्रभावित होती है। और फिर कानून के हिसाब से भरपार्इ मे, आपको कुछ अवश्य देना पड़ता है प्रभावित आत्मा को। तो यदि आप किसी पर चढ़ जाते हैं गल्ती से, तब आपको उसके लिए अदा करना पड़ता है अच्छा होने के लिए। भौतिक रूप से यह इस तरह है और आध्यात्मिक रूप से भी यह समान है। तो इसलिए कुछ भी जो हम इस संसार में इस्तेमाल करते हैं, हालांकि यह भौतिक इस्तेमाल होता है, जैसे हम कुछ खाते हैं, या हम कुछ लेते हैं, हमें हमेशा करना पड़ता है अपने अ्रक सांझा करना। इसीलिए यदि हम एकत्रित करते हैं बहुत सा, या हम बहुत खाते हैं, कोर्इ कुछ नहीं कहता, पर हमें इसके लिए शुल्क देना पड़ता है आध्यात्मिक रूप से। तो, इसका यह मतलब नहीं है कि जितना अधिक खाएंगे, आपके लिए बेहतर है। यह वैसे नहीं है, केवल इसलिए कि यह निशुल्क है या इसलिए कि आप अमीर हैं। आपको अभी भी देना पड़ता है चाहे यह आप ही का पैसा हो। आप आध्यात्मिक रूप से देते है। कुछ आध्यात्मिक योग्यता अंक उस प्राणी को अवश्य जा़ते हैं उसके या उसे विकास के लिए। इसीतरह सभी प्राणि विकसित होते हैं। देखा?

यह बेहतर है कि हम बहुत सा ध्यान करें और हमारे पास बहुत से योग्यता अंक वैसे भी। तो चाहे हम कुछ खर्च करते हैं खाद्य पर या किसी और चीज़ पर, या दुर्घटनावश किसी को चोट पहुंचाते हैं, हमारे पास फिर भी हैं पर्याप्त स्वयं के बचाव के लिए। उदाहरण के लिए, जब आपके साथ दुर्घटना होती है, आत्मा बस शरीर को छोड़ जाती है। तो, यदि आपको दर्द होता है या कुछ भी, यह केवल मन का होता है और केवल भौतिक प्रतिक्रिया नाड़ियों की। आत्मा जा चुकी होती है। तो, लगभग, लोगों को दर्द नहीं होता है। अधिकतर जब लोग हैं नहीं बहुत, बहुत पापी, तो जब वे मरते हैं, वे दर्द महसूस नहीं करते हैं। या उसे होती हैं दुर्घटना, उन्हें नहीं होता उतना अधिक दर्द क्योंकि आत्मा छोड़ गयी और कोशिश की शरीर की पीड़ा को कम करने की। तो, जब हम कुछ करते हैं इतना भारी बोझ तो आत्मा भी छोड़ जाती है। या आप जब बहुत अधिक पीड़ा में होते हो, तब आप बेहोश हो जाते हो। क्योंकि आत्मा अभी अभी छोड़ कर गयी है आत्मा नहीं चाहती रहना इतनी तंग जगह में और पी​ड़ित शरीर, पीड़ा दायी यंत्र।

तो आत्मा मुक्त हो जाती है, पर हमें जरूरत है अच्छा सम्बंध रखने की। भौतिक शरीर में, हमें जरूरत होगी रखने की दिव्य के साथ सम्बंध की। ताकि आत्मा प्रसन्न रहे व उपर जाए। और फिर जब आत्मा उपर होती है, आत्मा प्राप्त कर सकती है आध्यात्मिक पोषण वहाँ पर, भी। न केवल सीधा शारीरिक सम्बन्ध से, पर सीधा वहाँ उपर आत्मा के सम्बन्ध से दिव्य सम्पर्क से। शरीर केवल है लेने व देने के लिए कर्मों (प्रतिकार) के, और देना व लेना भी आध्यात्मिक आशीषें। तो यदि आप नहीं भी महसूस कर रहे कि आप उन्नत हो रहे हैं, पर यदि आपका शरीर पास है आशीष के स्त्रोत के, तब शरीर भी अच्छा महसूस करता है। मन भी अच्छा महसूस करता है। तनावमुक्त, और आरोग्यकर भी होता है उस परिस्थिति में।
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